Ticker

6/recent/ticker-posts

Ad Code

रंगा ने ‘अंधारकाळ’ का बेजोड़ अनुवाद कर राजस्थानी पाठकों को सौगात दी : डॉ. मदन सैनी कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की ९२वीं जयंती पर तीन दिवसीय ‘सृजन-सौरम-हमारे बाऊजी’ समारोह का हुआ समापन




मंगलकामनाएं / धर्म, साहित्य, खेलकूद और संस्कृति *Khabaron Me Bikaner*


*Khabaron Me Bikaner*
13 अक्टूबर 2025 सोमवार

Khabaron Me Bikaner


✒️@Mohan Thanvi

रंगा ने ‘अंधारकाळ’ का बेजोड़ अनुवाद कर राजस्थानी पाठकों को सौगात दी : डॉ. मदन सैनी

कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की ९२वीं जयंती पर तीन दिवसीय ‘सृजन-सौरम-हमारे बाऊजी’ समारोह का हुआ समापन

 

Khabaron Me Bikaner



रंगा ने ‘अंधारकाळ’ का बेजोड़ अनुवाद कर राजस्थानी पाठकों को सौगात दी : डॉ. मदन सैनी

कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की ९२वीं जयंती पर तीन दिवसीय ‘सृजन-सौरम-हमारे बाऊजी’ समारोह का हुआ समापन

बीकानेर 13 अक्टूबर, 2025।
   प्रज्ञालय संस्थान द्वारा देश के ख्यातनाम साहित्यकार, रंगकर्मी, चिंतक एवं शिक्षाविदï् कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की ९२वीं जयंती के अवसर पर तीन दिवसीय ‘सृजन सौरम-हमारे बाऊजी’ समारोह के तीसरे दिन आज कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की महत्वपूर्ण अनुवाद कृति का लोकार्पण, पौधारोपण एवं गायों को गुड़ चारा वितरण के साथ सम्पन्न हुआ।
   लक्ष्मीनारायण रंगा द्वारा राजस्थानी में अनूदित लोकार्पित कृति के मुख्य अतिथि देश के ख्यातनाम आलोचक-अनुवादक डॉ. मदन सैनी ने कहा कि कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा ने मूल अंग्रेजी से शशि थरूर की कृति का राजस्थानी में ‘अंधारकाळ’ का बेजोड़ अनुवाद कर राजस्थानी पाठकों को सौगात दी है, क्योंकि आधुनिक युग में अनुवाद की महत्ता एवं उपादेयता को विश्वभर में स्वीकारा जा चुका है, इस प्रकार अनुवाद आज विश्व की आवश्यकता बन गया है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के संदर्भ में शशि थरूर की पुरस्कृत कृति के अनुवाद माध्यम से ब्रिटिश काल का सम्पूर्ण लेखा-जोखा हमारे सामने एक चित्रराम की तरह सामने आता है। रंगा ने ‘अंधारकाळ’ नाम से अनुवाद कर जहां दो भाषाओं के बीच एक सेतु का काम किया है। वहीं उन्होंने इस कृति के माध्यम से अनुवाद कला की अपनी कुशलता को प्रगट किया है। 
   कार्यक्रम के प्रारम्भ में समारोह संयोजक वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने बताया कि कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा द्वारा देश के ख्यातनाम साहित्यकार, चिंतक शशि थरूर की अंग्रेजी चर्चित कृति ‘एन एरा ऑफ डार्कनेश : द ब्रिटिश इम्पायर इन इंडिया’ जिसे २०१९ में साहित्य अकादेमी नई दिल्ली का पुरस्कार मिला था का मूल अंग्रेजी से अनुवाद किया गया। इस अनुवाद कृति को साहित्य अकादेमी नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्य को कीर्तिशेष रंगा ने अपने जीवन के अंतिम समय में कर जीवनपर्यन्त सृजन करते रहे। 
   अनूदित पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि कीर्तिशेष रंगा द्वारा अनुवाद की गई यह कृति मूल अंग्रेजी से सीधी राजस्थानी में आने वाली प्रथम एवं महत्वपूर्ण कृति है जिसे साहित्य अकादेमी नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है।  
   इस अवसर पर कीर्तिशेष रंगा की स्मृति में विभिन्न तरह के २१ पौधों का रोपण किया गया। साथ ही इस अवसर पर गायों को हरा चारा एवं गुड़ आदि का वितरण नगर की कई गोशालाओं एवं सार्वजनिक स्थलों पर किया गया। 
   कार्यक्रम में राजेश रंगा, हरिनारायण आचार्य, अशोक शर्मा, पुनीत कुमार रंगा, अंकित रंगा, तोलाराम सहारण, घनश्याम ओझा, अख्तर अली, अरूण व्यास आदि ने रंगा की स्मृति में पौधारोपण एवं गायों को गुड़-चारा वितरण कर कीर्तिशेष रंगा को अपनी श्रद्धासुमन अर्पित किए।
   कार्यक्रम का सफल संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया। सभी का आभार युवा संस्कृतिकर्मी आशीष रंगा ने ज्ञापित किया।

Post a Comment

0 Comments