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पार्क में कविता : हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा राष्ट्रीय कवि चौपाल की 536वीं कड़ी अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस को समर्पित रही




मंगलकामनाएं / धर्म, साहित्य और संस्कृति *Khabaron Me Bikaner*


*Khabaron Me Bikaner*
5 अक्टूबर 2025 रविवार

Khabaron Me Bikaner


✒️@Mohan Thanvi

पार्क में कविता : हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा 
राष्ट्रीय कवि चौपाल की 536वीं कड़ी अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस को समर्पित रही



 

Khabaron Me Bikaner

पार्क में कविता : हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा 
राष्ट्रीय कवि चौपाल की 536वीं कड़ी अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस को समर्पित रही

हज़ार ज़ख़्म होतो मुस्कुरा भी लें, इस ज़िन्दगी का लुत्फ ज़रा सा उठा भी लें

चिन्तन की चिन्ता कर चिंतक सब शांत हुए, चिन्तन चिरंतन हो सोच रहा अन्तर्मन

हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा 

बीकानेर 5 अक्टूबर, 2025 
      राष्ट्रीय कवि चौपाल की 536वीं कड़ी अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस को समर्पित रही। इस विशेष कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. हरिदास हर्ष ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ ग़ज़लकार राजेन्द्र स्वर्णकार थे। विशिष्ट अतिथि मे
वरिष्ठ साहित्यकार सरदार अली पड़िहार व प्रसिद्ध शाइर कहानीकार कासिम बीकानेरी मंच शोभित हुए।
    आज की कड़ी के मुख्य आकर्षण थे राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ ग़ज़लकार इरशाद अज़ीज़ । जिनका संस्था द्वारा शाॅल, श्रीफल एवं माल्यार्पण द्वारा सम्मान किया गया। इससे पूर्व ईश वंदना "वेद विद्या जगति लुप्ता प्रायश: परमेश्वर" से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। 
     कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. हरिदास हर्ष ने अपने बौद्धिक एवं काव्यात्मक चिंतन के रूप में बताया कि चिन्तन की चिन्ता कर चिंतक सब शांत हुए, चिन्तन चिरंतन हो सोच रहा अन्तर्मन, मुख्य अतिथि राजेन्द्र स्वर्णकार - सृजक हो... रच डालो शब्दों से नूतन सृष्टि, लेखनी को नित्य नव्य नूतन उड़ान दो व शानदार ग़ज़ल..हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा ! द्वारा प्रस्तुत छंदों व ग़ज़ल द्वारा भरपूर वाहवाही लूटी। इरशाद अज़ीज़ दिल में हज़ार ज़ख़्म हों तो मुस्कुरा भी लें, इस ज़िन्दगी का लुत्फ ज़रा सा उठा भी लें। ख़ुशियाँ तो आनी जानी है मेहमान की तरह, कुछ दिन रूके तो इनको गले से लगा भी लें' दार्शनिक ग़ज़ल सुनाकर सदन का मन मोह लिया।
विशिष्ट अतिथि सरदार अली पड़िहार ने स्व बौद्धिक में बताया कि यौवन जितना रचो उतना कम, लेकिन कलमकार लेखनी में हो दम। 
   आज के कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शाइर क़ासिम बीकानेरी ने 'दामन के चाक देख, गिरेबां के तार देख/ फ़ुरक़त में किस क़दर हूं, तिरी बेक़रार देख' ग़जल का शे'र पेश करके काव्य गोष्ठी में नया रंग भरा । शाइर सागर सिद्दिक़ी ने जिसे लोग कहते है सोने की चिड़िया, बताओ वो भारत कहां है । लीलाधर सोनी दुःख होता है देखत सुनकर, दुःखी होकर लिखता हूं। शिव प्रकाश दाधीज सब्जी महंगी आटा महंगा ईस पर तुम चिल्लाये। दुध जरा सा मंहगा हो गया भाषण तक दे आये।।  
        रामेश्वर साधक : सीखो मृत्यु वर्ण माला त्वरित करें अंतस उजाला, निकृष्ट पर लगे तालामुक्ति का अचूक मसाला।। राजकुमार ग्रोवर ने भगवान से बोला रावण मेरे पतन होने के बतला दो कारण... कृष्णा वर्मा : सोलह कलाओं से अमृत बरसेगा धवल चांदनी रात, आसमां में तारे मोती से चमके मनमोहक लगती रात... मधुरिमा सिंह : सर्व हित में लेखन हो जमकर फिर प्रकाशन हो न शर्म कर, शमीम अहमद : श्री राम प्रभो की सत्संग चली ऋषि मुनि देवी देवता सब थे विराजमान सुभाष विश्नोई ने शरद पूर्णिमा में चंद्रमा की सोलह कला युक्त औषधीय किरणें प्रफूटित करता है। पवन चड्ढ़ा ने गीत पेश किया। 
आज के कार्यक्रम में हाजी निसार अहमद ग़ौरी, लोकेश लाडणवाल, घनश्याम सौलंकी, महेश कुमार हर्ष, हनुमान कच्छावा, शिव प्रकाश शर्मा, भंवरलाल, नत्थू खां, शंकरलाल, छोटू खां, हनुमान आदि कई गणमान्य साहित्य अनुरागी उपस्थित रहे कार्यक्रम का चुटिले अंदाज तो कभी दार्शनिक भाव शिव दाधिज ने किया जबकि आभार साधक ने व्यक्त किया ।


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